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सम्राट अशोक महान:-
महान सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व में हुआ था यह मगध सम्राट बिंदुसार के पुत्र थे इनके माता का नाम शुभाद्रंगी था। यह अखंड भारत के निर्माता सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र थे इनको विश्व के महान राजाओं में गिना जाता है। अशोक 269 ईसा पूर्व में मगध की राज गद्दी पर बैठे राजगद्दी पर बैठने से पहले वे अवंती के राज्यपाल थे।
मास्की एवं गुर्जरा अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है पुराणों में अशोक को अशोक वर्धन कहा गया है। अशोक ने अपने अभिषेक के आठवें वर्ष लगभग 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसली पर अधिकार कर लिया।
कलिंग के भीषण नरसंहार को देखकर अशोक का ह्रदय पिघल गया और उन्होंने कभी भी युद्ध ना लड़ने का निर्णय लिया और बौद्ध धर्म अपना लिया। उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद बहुत से नेक कार्य किए
उन्होंने आजीवकों के रहने हेतु बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण करवाया जिनका नाम कर्ज़, चोपर,सुदामा तथा विश्व झोपड़ी था।
उन्होंने जगह जगह पर चिकित्सालय खुलवाएं सड़कों के किनारे कुएं भी खुदवाई और पेड़ लगाएं और अपनी प्रजा तक अपनी बात पहुंचाने के लिए पत्थरों पर शिलालेख खुदवाई उन्होंने पशुओं के इलाज के लिए भी चिकित्सालय खुलवाया। सम्राट अशोक महान के शिलालेखों में ब्राह्मण, खरोष्ठी ,ग्रीक एवं आरमाइक लिपि का प्रयोग हुआ है।
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा। भारत में शिलालेखों का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने कराया।…….Join Telegram
ग्रीक एवं आरमेइक लिपि के अभिलेख अफगानिस्तान से ,खरोष्ठी लिपि के अभिलेख उत्तर पश्चिम पाकिस्तान से और शेष भारत से ब्राम्ही लिपि के अभिलेख मिले है। अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ई. में पाडरेटी फाइन्थेलर ने की थी जिनकी कुल संख्या 14 है।
इन सभी अभिलेखों को पढ़ने में सबसे पहले 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने सफलता हाशिल की। इसमें कौशाम्भी अभिलेख को रानी अभिलेख कहा जाता है। अशोक का सबसे छोटा स्तम्भ लेख रउम्मीदेई है इसी में धम्म यात्रा के दौरान अशोक द्वारा भू राजस्व की दर घटा देने की बात कही गयी है।
अशोक सातवां अभिलेख सबसे लम्बा है। प्रथम पृथक शिलालेख में यह घोषणा है की सभी मनुष्य मेरे बच्चे है। अशोक का शर ए कुंआ अभिलेख जो है ग्रीक एवं आरमेइक भाषाओं में प्राप्त हुआ है।
सम्राट अशोक महान के शाशन के दौरान मौर्या साम्राज्य में मुख्यमंत्रियों एवं पुरोहितो की नियुक्ति के पूर्व इनकी चरित्र को काफी जांचा परखा जाता था,जिसे उपधा परिक्षण कहा जाता था। सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद हुआ करती थी जिसमे सदस्यों की संख्या 12,16 या 20 हुआ करती थी।
अर्थशास्त्र के शीर्षस्थ अधिकारी के रूप में तीर्थ का उल्लेख मिलता है,जिसे महामात्र भी कहा जाता था,इनकी संख्या 18 थी। अर्थ शाश्त्र में चर जासूस को कहा गया है। अशोक के समय प्रांतो की संख्या 5 थी इस समय प्रांतो को चर कहा जाता था।
सम्राट अशोका का शासनकाल:-
यह बात सच है कि सम्राट अशोक महान का साम्राज्य हिमालय से लेकर अरब सागर तक फैला हुआ था इसी वजह से उन्हें चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि प्राप्त थी वही भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट थे
ऐसे विशाल साम्राज्य का सामान्य प्रशासन किन्ही मायने सिद्धांतों के अभाव में चल नहीं सकता था और ना इतना बड़ा राज्य केवल एक ही और अविभाज्य प्रशासनिक इकाई के रूप में व्यवस्थित ढंग से चल सकता था इसलिए राज्य की विशाल सीमाओं के छोटे-छोटे प्रदेश ग्राम समुदाय की स्थापना की जाती थी और उनके छोटे बड़े शासन नियुक्त किए जाते थे
जिनका पालन करना अनिवार्य था और उनका उल्लंघन करने पर व्यक्तिगत रूप में तथा सामूहिक रूप में दंडनीय समझा जाता था यदि यदि 2 गांव के बीच की सीमा पर विवाद उठ खड़ा होता था तो उन गांव के मुख्य अथवा आसपास के साथ या 10 गांव के मुखिया इकट्ठे होते थे
जिन्हें पंच ग्रामीण एवं दष ग्रामीण कहा जाता था और वह स्थाई अस्थाई रूप से सीमांकन करते थे जितनी भी विवाद शांत नहीं हो पाता था। तो गांव वाले किसान वृत्त तथा अन्य अनुभवी व्यक्ति जो की सीमाओं से पूर्व परिचित ना हो अपने वेश में परिवर्तन करके और दोनों गांव के सर्व साधारण जनता में घुल मिलकर वास्तविकता का पता लगाते थे
उनकी गवाही के आधार पर अंतिम रूप से सीमा का विवाद शांत कर दिया जाता था जो बने बनाए सीमा चिन्हों को तोड़ देते थे उन्हें 1000 दंड दिया जाता था सीमा के प्रश्न पर शोइंग राजतंत्र इतना सचिव एवं जागरूकता की किसी भी विवाद के सांत्वना होने पर राज्य संघ सचिव करता था एवं अपने अंतिम निर्णय देता था
यदि खेतों की सीमा पर विवाद हो जाता था तो संत एवं ग्राम न्यायालय के रूप में कार्य करते थे उन में मतभेद हो जाने पर बहुमत का निर्णय मान्य समझा जाता था अपवाद स्वरूप ईमानदार व्यक्तियों के मुकाबले भी कर दिया जाता है ढंग से बात करते थे उनकी संपत्ति का स्वामी बन जाता था राज्य की जाती थी दूसरे के मकान तथा दिया जाता था
जो किसान मेड काटकरअपना खेत बनाने का प्रयत्न करते थे उन्हें दंड दिया जाता था और अमीर को बिल्कुल समाप्त कर देने पर और भी कड़ा दंड मिलता था इस प्रणाली से तपोवन चरागाह राजमार्ग शमशान देवालय यज्ञ स्थान तथा अन्य पुण्य एवं सार्वजनिक स्थानों की सीमाओं के विवादों का निपटारा किया जाता था
संपूर्ण राज्य जनपदों में विभक्त किया जाता था और फिर प्रत्येक जनपद 4 विभागों में बांटा जाता था विभाग के 800 गांव में स्थानीय गांव में आवंटित और 10 गांव में चारों संगठनों को राजकीय के हिसाब से श्रेष्ठ मध्यम तथा निकृष्ट कक्षाओं में रखा जाता था
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