आंदोलन संगठित सत्ता तंत्र या व्यवस्था द्वारा शोषण और अन्याय किए जाने के बोध से उसके खिलाफ पैदा हुआ संगठित और सुनियोजित अथवा स्वतःस्फूर्त सामूहिक संघर्ष है। इसका उद्देश्य सत्ता या व्यवस्था में सुधार या परिवर्तन होता है।
भारत के प्रमुख आंदोलन और उनके प्रभाव:-
चिपको आंदोलन (1970):
चिपको Movement एक पर्यावरण रक्षा का आंदोलन है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य (तब उत्तर प्रदेश का ही भाग था ) में किसानो ने बृक्षों के कटाई का विरोध करने के लिए किया था। वे राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनो के कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर परम्परागत अधिकार जाता रहे थे ।
यह आंदोलन तत्कालीन उत्तेर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1970 में प्रारम्भ हुआ। एक दसक के अंदर ही यह पुरे उत्तराखंड राज्य में फ़ैल गया। इस Movement की एक मुख्या विषेशता थी की इसमें स्त्रियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया था। इस Movement के मुख्य नेतृत्वकर्ता भारत क प्रशिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा, कॉमरेड गोविन्द सिंह रावत, चांदीप्रशाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी आदि थे।
भारत के प्रमुख आंदोलन और उनके प्रभाव
2. जालियांवाला बाग हत्याकांड (1919):
जलियावाला बाग अमृतसर(पंजाब) के स्वर्ण मंदिर के पास का एक छोटा सा बगीचा था जहाँ 13 अप्रैल 1919 को ब्रिगेडियर जनरल डायर के आदेश पर अंग्रेजी फौज ने गोलिया चला के निहत्थे, बूढ़ो, महिलाओ और बच्चो सहित सैकड़ो लोगो को मर डाला था।
जालियांवाला बाग हत्याकांड (1919):
3. चौरी चौरा कांड(1922):
चौरी चौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में बसा एक छोटा सा क़स्बा है जहाँ 4 फरवरी 1922 को भारतियों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी। जिससे उसमे छुपे हुए 22 पुलिस कर्मी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा कांड के नाम से जान जाता है। इसके परिणाम स्वरुप गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था , चौरी चौरा कांड के अभियुक्तों का मुकदमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और उन्हें बचलेना उनकी बहुत बडी सफलता थी।
चौरी चौरा कांड(1922):
4. असहयोग आंदोलन(1920-1922):
सितम्बर 1920 से फरवरी 1922 के बीच महात्मा गाँधी तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया गया, जिसने भारतीय स्वतंत्रता Movement को एक नयी जाग्रति प्रदान की। जलीयावाला बाग नरसंहार सहित अनेक घटनाओ के बाद गाँधी जी ने अनुभव किया की ब्रिटिश हाथो में में एक उचित न्याय मिलने की कोई सम्भावना नहीं है इसलिए उन्होंने असहयोग आंदोलन प्रारम्भ किया और देश में प्रसाशनिक में सुधार हुआ। यह Movement अत्यंत सफल रहा, क्योंकि इसे लाखो भारतियों का प्रोत्साहन मिला।
असहयोग आंदोलन(1920-1922):
5. भारत छोडो आंदोलन(1942):
गाँधी जी के नेतृत्व में यह आंदोलन 1942 में प्रारम्भ हुआ यह आंदोलन बहुत ही सोची समझी रड़नीति का हिस्सा था ,इसमें पूरा देश शामिल हुआ था। 8 अगस्त 1942 को शुरू हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाने वाले भारत छोडो आंदोलन ने अंग्रेजी हुकूमत की नीव हिला दिया था यह आंदोलन गाँधी जी के आह्वाहन पर सुरु हुआ था।
भारत छोडो आंदोलन(1942):
6. सविनय अवज्ञा आंदोलन(1930):
सविनय अवज्ञा Movement, ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाये गए जनांदोलन में से एक था। 1929 ई तक भारत को ब्रिटेन के इरादे पर शक होने लगा था की वह औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने पर अमल करेगा की नहीं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन (1929) में घोषणा की की उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है। 6 अप्रैल 1930 को सुबह महात्मा गाँधी ने समुन्द्र तट पर नमक बनाकर नमक कानून को भांग किया यही से सविनय अवज्ञा आंदोलन का शुरुआत हुआ ।
सविनय अवज्ञा (1930):
7. होमरूल आंदोलन(1916):
“होमरूल” शब्द आयरलैंड के एक ऐसे ही Movement से लिया गया था जिसका सर्वप्रथम प्रयोग श्यामजी कृष्णा वर्मा ने 1905 में लन्दन में किया था। लेकिन इसका सार्थक प्रयोग करने का श्रेया बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट को जाता है। भारत में दो होमरूल लीगो की स्थापना की गयी ,जिसमे से एक की स्थापना बाल गंगाधर तिलक ने अप्रैल 1916 में पूना में की थी और दूसरे की स्थापना एनी बेसेंट सितम्बर 1916 में मद्रास में की थी।
8.खिलाफत आंदोलन(1919-1921):
खिलाफत आंदोलन(मार्च 1919-जनवरी 1921) मार्च 1919 में दिल्ली में एक खिलाफत समिति का गठन हुआ। मोहम्मद अली जिन्ना और शौकत अली बंधुओं के साथ-साथ अनेक मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जन कार्यवाही की सम्भावना तलाशने के लिए महात्मा गाँधी के साथ चर्चा शुरू कर दी । सितम्बर 1920 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में महात्मा गाँधी ने दूसरे नेतावो को इसके लिए मना लिया की खिलाफत Movement के समर्थन और स्वराज्य के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए।
9. नील बिद्रोह(1859-60):
19 वीं सताब्दी के मध्य से लेकर भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक अंग्रेजी शासन के बिरुद्ध अनेक किसान बिद्रोह हुए जैसे-निल बिद्रोह,पबना आंदोलन,दक्कन बिद्रोह,किसान सभा आंदोलन, मोपला बिद्रोह,बारदोली सत्याग्रह आदि । इनमे 1859-60 में बंगाल में हुआ “नील बिद्रोह” अंग्रेजी शासन के बिरुद्ध पहला सुसंगठित तथा जुझारू बिद्रोह था। यूरोपीय बाजार में नील की बढाती मांग की पूर्ति के लिए बंगाल के किसानो से अंग्रेज नील की अलाभकारी खेती जबरन करा रहे थे वे किसानो की निरछरता का लाभ उठाकर उनसे थोड़े से पैसे में करार कराकर चावल की खेती लायक जमीं पर निल की खेती करवाते थे। यदि किसान करार के पैसे वापस कर शोषण से छुटकारा पाना चाहते तो नील उत्पादक उनको अपहरण,अवैध बेदखल,लाठियों से पीटकर ,उनकी महिलाओ और बच्चो को पीटकर आदि क्रूर हथकंडे अपनाते थे और उन्हें नील की खेती को मजबूर करते थे ।
नील बिद्रोह(1859-60):
10. 1857 का बिद्रोह:
1857 का भारतीय बिद्रोह,जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नाम से भी जाना जाता है ब्रिटिश शासन के बिरुद्ध एक सशस्त्र बिद्रोह था। इस बिद्रोह का प्रारम्भ छावनी में छोटी झड़पों और आगजनी से हुआ था और आगे चलकर इसने एक बड़ा रूप ले लिया । 29 मार्च 1857 को बैरकपुर(पश्चिम बंगाल) में सैनिको ने चर्बी वाले कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया। एक सैनिक मंगल पांडेय ने अपने सार्जेंट पर हमला कर उसकी हत्या कर दी। 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी । 34वीं देसी पैदल सेना रेजिमेंट को भंग कर दिया गया।
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